Tuesday, April 18, 2017

सामान्य विज्ञान : Important Question of Science

सामान्य विज्ञान : ऊतक (PSC/UPSC/IAS/SSC/FCI/PGT/TGT/TET

▶ऊतक (tissue) किसी जीव के शरीर मेंकोशिकाओं के ऐसे समूह को कहते हैं जिनकी उत्पत्ति एक समान हो तथा वे एक विशेष कार्य करती हो। अधिकांशतः ऊतको का आकार एंव आकृति एक समान होती है। परंतु कभी कभी कुछ उतकों के आकार एंव आकृति मे असमानता पाई जाती है, मगर उनकी उत्पत्ति एंव कार्य समान ही होते हैं।

▶ऊतक के अध्ययन को ऊतक विज्ञान(Histology) के रूप में जाना जाता है।




मानव ऊतक (Animal Tissue)

▶मानव ऊतक मुख्यत: पाँच प्रकार के होते हैं:

▶उपकला 

▶संयोजी ऊतक

▶ स्केलेरस ऊतक 

▶पेशी ऊतक तथा 

▶तंत्रिका ऊतक।



उपकला (Epithelial Tissue)

यह ऊतक शरीर को बाहर से ढँकता है तथा समस्त खोखले अंगों को भीतर से भी ढँकता है। रुधिरवाहिनियों के भीतर ऐसा ही ऊतक, जिसे अंत:स्तर कहते हैं, रहता है। उपकला के भेद ये हैं -

(क) साधारण, 
(ख) स्तंभाकार,
(ग) रोमश,
(घ) स्तरित, 
(च) परिवर्तनशील, तथा
(छ) रंजककणकित ।

संयोजी ऊतक (Connective tissue)

▶यह ऊतक एक अंग को दूसरे अंग से जोड़ने का काम करता है। यह प्रत्येक अंग में पाया जाता है। इसके अंतर्गत

(क) रुधिर ऊतक,
(ख) अस्थि ऊतक,
(ग) लस ऊतक तथा 
(घ) वसा ऊतक आते हैं।

▶रुधिर ऊतक के, लाल रुधिरकणिका तथा श्वेत रुधिरकणिका, दो भाग होते हैं। 
▶लाल रुधिरकणिका ऑक्सीजन का आदान प्रदान करती है तथा श्वेत रुधिरकणिका रोगों से शरीर की रक्षा करती है। 
▶मानव की लाल रुधिरकोशिका में न्यूक्लियस नहीं रहता है।

▶अस्थि ऊतक का निर्माण अस्थिकोशिका से, जो चूना एवं फ़ॉस्फ़ोरस से पूरित रहती है, होता है। इसकी गणना हम स्केलेरस ऊतक में करेंगे,

▶लस ऊतक लसकोशिकाओं से निर्मित है। इसी से लसपर्व तथा टॉन्सिल आदि निर्मित हैं। यह ऊतक शरीर का रक्षक है। आघात तथा उपसर्ग के तुरंत बाद लसपर्व शोथयुक्त हो जाते हैं।

▶वसा ऊतक दो प्रकार के होते हैं : एरिओलर तथाएडिपोस।

इनके अतिरिक्
त (1) पीत इलैस्टिक ऊतक, (2) म्युकाइड ऊतक, 
(3) रंजक कणकित संयोजी ऊतक, 
(4) न्युराग्लिया आदि भी संयोजी ऊतक के कार्य, आकार, स्थान के अनुसार भेद हैं।

स्केलेरस ऊतक

▶यह संयोजी तंतु के समान होता है तथा शरीर का ढाँचा बनाता है। इसके अंतर्गत अस्थि तथा कार्टिलेज आते हैं। कार्टिलेज भी तीन प्रकार के होते हैं :

हाइलाइन, फाइब्रो-कार्टिलेज, तथा इलैस्टिक फाइब्रो-कार्टिलेज या पीत कार्टिलेज।

▶मानव शरीर में २०६ अस्थिया होती है

पेशी ऊतक (Muscular Tissue)

▶इसमें लाल पेशी तंतु रहते हैं, जो संकुचित होने की शक्ति रखते हैं।

▶रेखांकित या ऐच्छिक पेशी ऊतक वह है जो शरीर को नाना प्रकार की गतियां कराता है,अनैच्छिक या अरेखांकित पेशी ऊतक वह है जो आशयों की दीवार बनाता है तथाहृत् पेशी (cardiac muscle) ऊतक रेखांकित तो है, परंतु ऐच्छिक नहीं है।


तंत्रिका ऊतक (Nervous Tissue)

▶इसमें संवेदनाग्रहण, चालन आदि के गुण होते हैं। इसमें तंत्रिका कोशिका तथा न्यूराग्लिया रहता है। मस्तिष्क के धूसर भाग में ये कोशिकाएँ रहती हैं तथा श्वेत भाग में न्यूराग्लिया रहता है। कोशिकाओं से ऐक्सोन तथा डेंड्रॉन नाक प्रर्वध निकलते हैं। नाना प्रकार के ऊतक मिलकर शरीर के विभिन्न अंगों (organs) का निर्माण करते हैं। एक प्रकार के कार्य करनेवाले विभिन्न अंग मिलकर एक तंत्र (system) का निर्माण करते हैं।

1). तारपीन का तेल किस से मिलता है ?
~चीड़ के वृक्षो से
2).तंत्रिका तंत्र की इकाई को क्या कहते हैं ? ~neuron
3). मनुष्य के शरीर में जल कितना प्रतिशत होता है?
~ लगभग 65 प्रतिशत
4).मनुष्य के शरीर में कुल हड्डियों की संख्या
कितनी होती है ?
~206
5).सामान्य मनुष्य में रक्त की मात्रा कितनी
होती है ?
~5 से 6 लीटर
6). मानव शरीर की सबसे छोटी
हड्डी कौन है ? स्टेपिस
7). मानव शरीर की सबसे बड़ी
हड्डी होतीहै?
~ फिमर
8). Rbc का कब्र किसे कहा जाता है ?
~यकृत को
9).RBC के जीवन काल कितना होता है?
~ 20 से 120 दिन
10). पत्तियों का हरा रंग होने का कारण क्या है? ~क्लोरोफिल
11). शरीर में आयोडीन की कमी
से होने वाला रोग कौन है ?
~घेंघा रोग मनुष्य में
12). बौनापन किस कमी से होता है ?
~ STHहार्मोन की कमी से
13). कपाल में हड्डियों की संख्या कितनी
होती है?
~ 8
14). कान में हड्डियों की संख्या कितनी होती
है ?
~6
15).मास्टर ग्रंथि किसे कहा जाता है ?
~पीयूष ग्रंथि को



द्रव्य व उसकी प्रकृति



हर वह वस्तु जिसमें भार होता है और जगह घेरती है, उसे द्रव्य कहते हैं। किसी भी वस्तु में द्रव्य की मात्रा को द्रव्यमान (mass) कहते हैं


वर्गीकरण
हम द्रव्य को शुद्ध पदार्थ तथा मिश्रण में वर्गीकृत कर सकते हैं। द्रव्य का वर्गीकरण तत्व, यौगिक और मिश्रण में भी किया जाता है। 
तत्व (Element)- वह पदार्थ जो न तोड़ा जा सकता है और न ही दो या अधिक साधारण पदार्थों से भौतिक या रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा बनाया जा सकता है, तत्व कहलाता है। उदाहरण- ताँबा (Cu), चाँदी (Ag), हाइड्रोजन (H) आदि। 

यौगिक (Compound)- दो या अधिक तत्वों का निश्चित अनुपात में संयोजन यौगिक कहलाता है। यह किसी विधि द्वारा दो या अधिक तत्वों में विभाजित किया जा सकता है। इन यौगिकों के गुणधर्म इनके घटक तत्वों से बिल्कुल ही भिन्न होते हैं। उदाहरण- जल, शर्करा, लवण, क्लोरोफॉर्म आदि। 

मिश्रण (Mixture)- जब हम किसी भी दो या अधिक पदार्थ, तत्व या यौगिक को अनिश्चित अनुपात में मिलाते हैं तो प्राप्त होने वाले पदार्थ को मिश्रण कहा जाता है। मिश्रण में घटकों का गुण धर्म अपरिवर्तित रहता है। उदाहरण- पेट्रोल, वायु, औषधि इत्यादि। मिश्रण को समांगी (Homogeneous) व असमांगी (Heterogeneous)- दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है। 


आवोग्रादो परिकल्पना व मोल (द्वशद्यद्ग) की संकल्पना



इस परिकल्पना के अनुसार सभी गैसों के समान आयतन में समान ताप व दाब पर समान संख्या में कण पाए जाते हैं। प्रयोगों में यह पाया गया है कि मानक ताप व दाब अर्थात 273ok के ताप और पारे के 76 सेमी. दाब पर सभी गैसों का एक ग्राम आण्विक द्रव्यमान 22.4 ली. आयतन घेरता है। इस आयतन को मानक मोलर आयतन (Standard Molar Volume) कहते हैं।


आवोग्रादो परिकल्पना के अनुसार मानक ताप व दाब पर सभी गैसों के 22.4 ली. आयतन में अणुओं की संख्या स्थिर होती है। इस आयतन में 6.023 x 1023 अणु पाए जाते हैं। इस संख्या को आवोग्रादो संख्या कहते हैं। 






द्रव्य का गतिज सिद्धान्त
अणुओं में गतिज ऊर्जा (Kinetic energy) होती है और द्रव व गैस के अणु संपूर्ण आयतन में मुक्त रूप से घूमते रहते हैं। गैस के अणु निरंतर यादृच्छिक (Random) गति में होते हैं और पात्र की दीवार पर दबाव डालते हैं। तापमान की वृद्धि करने से गैसों के अणुओं की गतिज ऊर्जा में भी वृद्धि हो जाती है। 






रासायनिक अभिक्रियाएँ तथा रासायनिक समीकरण
रासायनिक समीकरण को रासायनिक क्रिया या रासायनिक अभिक्रिया भी कहते हैं। वह प्रक्रम (Process) जिसमें दो या अधिक पदार्थों (तत्व तथा यौगिक) की पारस्परिक अभिक्रिया से जब कोई एक या अधिक नए पदार्थ बनते हैं, रासायनिक अभिक्रिया कहलाता है। रासायनिक अभिक्रियाएँ मुख्यत: चार प्रकार की होती हैं- संयोजन, अपघटन, विस्थापन तथा उभय अपघटन (double decomposition) ।
किसी भी रासायनिक अभिक्रिया को प्रदर्शित करने का सबसे सरल तरीका उसे रासायनिक समीकरणों में लिखना है। 


परमाणु संरचना (Atomic Structure) 
सन् 1808 में ब्रिटेन के भौतिकशास्त्री जॉन डाल्टन ने बताया कि पदार्थ अत्यन्त छोटे-छोटे अविभाज्य कणों से मिलकर बना होता है, जिन्हें परमाणु कहते हैं। इसका स्वतंत्र अस्तित्व संभव है। बाद में प्रसिद्ध वैज्ञानिक जे. जे. थॉमसन व रदरफोर्ड ने बताया कि परमाणु अविभाज्य नहीं है, बल्कि यह छोटे-छोटे आवेशित कणों से मिलकर बना होता है। आधुनिक अवधारणा के अनुसार परमाणु धनावेशित प्रोटानों, ऋणावेशित इलेक्ट्रॉनों व उदासीन न्यूट्रॉनों से मिलकर बना होता है। परमाणु के केंद्र में एक नाभिक होता है, जिसमें प्रोटॉन व न्यूट्रॉन उपस्थित रहते हैं। इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। परमाणु का समस्त द्रव्यमान इसके नाभिक में केंद्रित रहता है। 


रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल-


सन् 1911 में अंग्रेज भौतिकशास्त्री रदरफोर्ड ने धातु पन्नों पर ड्ड-कणों की बमबारी करके परमाणु संरचना के संदर्भ में महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त किए- 
परमाणु का अधिकांश भाग खोखला है। 

परमाणु के केंद्र में अति सूक्ष्म स्थान में एक धनावेशित भाग है। 

धनावेश अत्यन्त सघन व दृढ़ भाग में संकेंद्रित है जिसे नाभिक कहते हैं। नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन विभिन्न कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं। 


परमाणु का बोह्र मॉडल-


1913 में डेनिस भौतिकशास्त्री नील बोह्र ने रदरफोर्ड मॉडल में कमियों को दूर करने का प्रयास किया, जिनकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं- 
इलेक्ट्रॉन केवल कुछ ऐसी सुनिश्चित कक्षाओं में घूमते हैं जिनमें उनकी ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं होता। इन्हें स्थायी कक्षायें (Stable orbits) कहते हैं। 

जब इलेक्ट्रॉन किसी उच्च ऊर्जा वाली कक्षा से निम्न ऊर्जा वाली कक्षा में लौटता है तो वैद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन करता है। 


परमाणु क्रमांक (Atomic Number)-


किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या को उस तत्व का परमाणु क्रमांक कहते हैं। 
परमाणु क्रमांक = प्रोटॉनों की संख्या = इलेक्ट्रॉनों की संख्या



द्रव्यमान संख्या (Mass Number) -


किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों व न्यूट्रॉनों की संख्याओं का योग, द्रव्यमान संख्या कहलाता है। 
द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉनों की संख्या+न्यूट्रॉनों की संख्या



परमाणु भार (Atomic Weight) -


किसी तत्व का परमाणु भार वह संख्या है, जो प्रदर्शित करती है कि तत्व का एक परमाणु कार्बन परमाणु के 1/12 भाग से कितना गुना भारी है।



अणु (Molecules) -


पदार्थ अणुओं से मिलकर बने होते है और अणु परमाणुओं से। अणु किसी पदार्थ के वे सूक्ष्मतम कण होते हैं जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकते हैं और उसमें पदार्थ के समस्त गुण उपस्थित रहते हैं।



अणुभार (Molecular Weight)-


किसी पदार्थ का अणुभार वह संख्या है जो यह प्रदर्शित करता है कि उस पदार्थ का एक अणु कार्बन-12 समस्थानिक (isotope) के एक परमाणु के भार के 1/12 भाग से कितना गुना भारी है।



ग्राम अणु भार (Gram Molecular Weight)-


जब किसी पदार्थ के अणुओं का भार ग्राम में प्रदर्शित किया जाता है तो उसे ग्राम अणु भार कहते हैं। प्रत्येक पदार्थ के 1 ग्राम अणु में उस पदार्थ के 6.023&1023 अणु होते हैं।



समास्थानिक (Isotopes) -


किसी तत्व के परमाणु जिनके परमाणु क्रमांक समान व परमाणु भार भिन्न-भिन्न होते हैं, समस्थानिक कहलाते हैं। हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक हैं जिन्हें 1h1, 1h2, 1h3 से प्रदर्शित करते हैं।



समभारिक (Isobars)-


भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु जिनके परमाणु क्रमांक भिन्न-भिन्न परंतु द्रव्यमान संख्या समान होते हैं, समभारिक कहलाते हैं। कार्बन तथा नाइट्रोजन की द्रव्यमान संख्या 14 है, अत: ये समभारिक हैं।



समन्यूट्रॉनिक (Isotones) -


जिन परमाणुओं में न्यूट्रॉनों की संख्या समान होती है, समन्यूट्रॉनिक कहलाते हैं। उदाहरण 6c13व 7N14 समन्यूट्रॉनिक हैं।



समावयवता (Isomerism)-


कुछ यौगिक ऐसे होते हैं जिनके अणु सूत्र तो समान होते हैं, परंतु संरचनात्मक सूत्रों में भिन्नता के कारण ऐसे यौगिकों के गुण भी भिन्न-भिन्न होते हैं। उदाहरण- एथिल अल्कोहल व डाइमेथिल ईथर एक दूसरे के समावयवी हैं।



अपररूपता (Allotropy)-


जब एक ही तत्व भिन्न-भिन्न रूपों में पाया जाता है तो ये रूप उस तत्व के अपररूप कहलाते हैं। हीरा व कार्बन के दो अपररूप हैं। अपररूपों के भौतिक व रासायनिक गुण एक दूसरे से भिन्न होते हैं।



हाइड्रोजनीकरण-


यह हाइड्रोजन उपयोग करने की बहुत ही महत्वपूर्ण औद्योगिक विधि है। जब गर्म तत्व वनस्पति तेल में निकिल (उत्प्रेरक) की उपस्थिति में तीव्र हाइड्रोजन प्रवाहित किया जाता है तो वनस्पति तेल ठोस वसा में परिवर्तित हो जाता है जिसे वनस्पति घी कहा जाता है। इस प्रक्रिया को ही हाइड्रोजनीकरण कहते हैं।



उत्प्रेरक-


1835 में बर्जीलियस ने देखा कि कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो रासायनिक क्रियाओं के वेग को प्रभावित करते हैं। परंतु रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप ऐसे पदार्र्थों की संरचना या गुणधर्म अप्रभावित रहते हैं। ऐसे पदार्र्थों को उत्प्रेरक कहते हैं और इस प्रक्रिया को उत्प्रेरण कहते हैं।






तत्वों की आवर्त तालिका (Periodic table of Elements) - 
1869 में रूस के वैज्ञानिक दमित्री इवान विच मैंडलीफ ने प्रतिपादित किया कि अगर तत्वों को उनके परमाणु भार के क्रम से लिखा जाए तो उनके गुणधर्मों में एक स्पष्टï आवर्तन नजर आता है। इस आवर्त तालिका में क्षैतिज तथा उध्र्वाधर स्तम्भ (columns) होते हैं। आवर्त सारिणी में कुल मिलाकर 7 आवर्त (क्षैतिज स्तम्भ) तथा 18 समूह (Groups, उध्र्वाधर स्तम्भ) हैं। किसी भी एक उपसमूह में सभी तत्वों की विशेषताएँ समान होती हैं। 






रासायनिक बंध (Chemical Bonding)



विभिन्न तत्वों के परमाणु रासायनिक अभिक्रिया करके आपस में आबंध निर्माण करते हैं तो उस क्रिया को रासायनिक बंधन कहते हैं। इस प्रकार तत्वों के परमाणु रासायनिक बंधन द्वारा नए अणुओं का निर्माण करते हैं। यह बंधन परमाणु के बाह्यïतम कक्षा में स्थित इलेक्ट्रॉन से बनता है। रासायनिक बंधन निम्नलिखित हैं- 
वैद्युत संयोजकता (Electrovalency)- वैद्युत संयोजक तब बनता है जब एक परमाणु से इलेक्ट्रॉन पूर्णत: दूसरे तत्व के परमाणु में स्थानांतरित होते हैं। ऐसे बंध आयनिक बंध भी कहलाते हैं। उदाहरणार्थ, सोडियम क्लोराइड (हृड्डष्टद्य) का बनना। 

सह संयोजकता (Co-valency)- दो परमाणुओं के संयुक्त होने का वह प्रक्रम जिसमें इलेक्ट्रॉनों की पारस्पारिक साझेदारी होती है, सह-संयोजकता कहलाती है। उदाहरण- क्लोरीन अणु का बनना। 

उपसह-संयोजकता (Co-ordinate)- सह-संयोजकता में सह-भाजित इलेक्ट्रॉन युग्म की रचना के लिए प्रत्येक संयोजी परमाणु का एक-एक इलेक्ट्र्ॉन भाग लेता है। परंतु बहुत से ऐसे भी अणु हैं जिनमें सह-भाजित इलेक्ट्रॉन युग्म संयोजी परमाणुओं में से किसी एक ही परमाणु द्वारा दिये जाते हैं, परंतु इलेक्ट्रॉन का सह-भाजन दोनों परमाणुओं के बीच होता है। इस प्रकार के बंध को उपसह-संयोजक (Co-ordinate Bond) कहते हैं।

संयोजकता का सिद्धान्त (Theory of Valency)- तत्वों के परमाणुओं के परस्पर संयोजन करने की क्षमता को संयोजकता (Valency) कहते हैं। किसी तत्व की संयोजकता उसके परमाणु के बाहरी कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करती है।


General Knowledge-सामान्य ज्ञान भारत में परमाणु ऊर्जा
परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्वक ढंग से उपयोग में लाने हेतु नीतियों को बनाने के लिए 1948 ई. में परमाणु ऊर्जा कमीशन की स्थापना की गई। इन नीतियों को निष्पादित करने के लिए 1954 ई. में परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) की स्थापना की गई।

परमाणु ऊर्जा विभाग के परिवार में पाँच अनुसंधान केंद्र हैं- (i) भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (BARC)- मुंबई, महाराष्ट्र। (ii) इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR)- कलपक्कम, तमिलनाडु। (iii) उन्नत तकनीकी केंद्र (CAT) - इंदौर। (iv) वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन केंद्र (VECC) - कोलकाता। (v) परमाणु पदार्थ अन्वेषण और अनुसंधान निदेशालय (AMD)- हैदराबाद। परमाणु ऊर्जा विभाग सात राष्ट्रीय स्वायत्त संस्थानों को भी आर्थिक सहायता देता है, वे हैं- (i) टाटा फंडामेंटल अनुसंधान संस्थान (TIFR)- मुम्बई। (ii) टाटा स्मारक केंद्र (TMC) - मुंबई। (iii) साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान (SINP)- कोलकाता। (iv) भौतिकी सँस्थान (IOP)- भुवनेश्वर। (v) हरिश्चंद्र अनुसंधान संस्थान (HRI)- इलाहाबाद। (vi) गणितीय विज्ञान संस्थान (IMSs) - चेन्नई और (vii) प्लाज़्मा अनुसंधान संस्थान (IPR)- अहमदाबाद। 

नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम (Nuclear Power Programme)- 1940 ई. के दौरान देश के यूरेनियम और बड़ी मात्रा में उपलब्ध थोरियम संसाधनों के प्रयोग के लिए तीन चरण वाले परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का गठन किया गया। कार्यक्रम के चल रहे पहले चरण में बिजली के उत्पादन के लिए प्राकृतिक यूरेनियम ईंधन वाले भारी दबाव युक्त पानी रिएक्टर (Pressurised Heavy water reactors) का इस्तेमाल किया जा रहा है। उपयोग में लाए गए ईंधन को जब दुबारा संसाधित किया जाता है तो उससे प्लूटोनियम उत्पन्न होता है जिसका प्रयोग दूसरे चरण में द्रुत ब्रीडर रिएक्टर में विच्छेदित यूरेनियम के साथ ईंधन के रूप में किया जाता है। दूसरे चरण में उपयोग में लाए ईंधन को दुबारा संसाधित करने पर अधिक प्लूटोनियम और यूरोनियम-233 उत्पादित होता है, जब थोरियम का उपयोग आवरण के रूप में किया जाता है। तीसरे चरण के रिएक्टर यूरेनियम-233 का इस्तेमाल करेंगे।

नाभिकीय ऊर्जा केंद्र (Nuclear Power Stations)- अभी देश में 17 परिचालित नाभिकीय ऊर्जा रिएक्टर (दो क्वथन जलयुक्त रिएक्टर - Boiling water reactors और 15 पी एच डब्लू आर एस) हैं, जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 4120 मेगावाट इकाई है। भारत में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र की रूपरेखा, निर्माण और संचालन की क्षमता पूरी तरह तब प्रतिष्ठित हुई जब चेन्नई के पास कालपक्कम में 1984 और 1986 में दो स्वदेशी पी एच डब्ल्यू आर एस की स्थापना की गई। वर्ष 2008 में एनपीसीआईएल के परमाणु संयंत्रों से 15,430 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ।

तारापुर परमाणु विद्युत परियोजना-3 एवं 4 की 540 मेगावाट की इकाई-4 को 5 वर्षों से कम समय में ही मार्च 2005 को क्रांतिक (Critical) किया गया। कैगा 3 एवं 4 का निर्माण प्रगत अवस्था में है तथा कैगा-3 के अधिचालन (commissioning) की गतिविधियाँ शुरू की जा चुकी हैं। इन इकाइयों को 2007 तक पूरा किया जाना है। 
तमिलनाडु के कंदुनकुलम में परमाणु ऊर्जा केंद्र की स्थापना करने के लिए भारत ने रूस से समझौता किया। इस केंद्र में दो दबावयुक्त जल रिएक्टर (हर एक की क्षमता 1000 मेगावाट) होंगे। 

भारी जल उत्पादन (Heavy Water Production) - भारी जल का इस्तेमाल पी एच डब्ल्यू आर में परिमार्णक और शीतलक के रूप में किया जाता है। भारी जल उत्पादन संयंत्रों की स्थापना निम्नलिखित जगहों पर की गई है-
1. नांगल (पंजाब), देश का पहला भारी जल संयंत्र जिसकी स्थापना 1962 में की गई; 2. वडोदरा (गुजरात); 3. तालचेर (उड़ीसा); 4. तूतीकोरिन (तमिलनाडु); 5. थाल (महाराष्ट्र); 6. हज़ीरा (गुजरात); 7. रावतभाटा (गुजरात); 8. मानुगुरू (आंध्र प्रदेश)

नाभिकीय ईंधन उत्पादन (Nuclear Fuel Production) - हैदराबाद का नाभिकीय ईंधन कॉम्पलेक्स दबावयुक्त जल रिएक्टर के लिए आवश्यक ईंधन के तत्वों को तैयार करता है। यह तारापुर के क्वथन जल (boiling water) रिएक्टर के लिए आयात यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड से संवर्धित यूरेनियम ईंधन के तत्वों का भी उत्पादन करता है। 

प्रमुख परमाणु अनुसंधान केंद्र (Main Atomic Research Center)

1. भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Center) - इसको मुंबई के निकट ट्राम्बे में परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान के रूप में 1957 ई. में स्थापित किया गया और 1967 ई. में इसका नाम बदलकर इसके संस्थापक डा. होमी जहाँगीर भाभा की याद में 'भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, बार्क' रख दिया गया। नाभिकीय ऊर्जा और उससे जुड़े अन्य विषयों पर अनुसंधान और विकास कार्य करने के लिए यह प्रमुख राष्ट्रीय केंद्र है।

2. इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (Indira Gandhi Atomic Research Center- IGCAR ) - 1971 ई. में फास्ट ब्रीडर टेक्नोलॉजी के अनुसंधान और विकास के लिए चेन्नई के कालपक्कम में इसकी स्थापना की गई। आई जी सी ए आर ने फास्ट ब्रीडर रिएक्टर एफ बी टी आर को अभिकल्पित किया जो प्लूटोनियम और प्राकृतिक यूरेनियम मूलांश के साथ देशी मिश्रित ईंधन का इस्तेमाल करता है। इससे भारत को अपने प्रचुर थोरियम संसाधनों से परमाणु ऊर्जा उत्पन्न करने में सहायता मिलेगी। इस अनुसंधान केंद्र ने देश का पहला न्यूट्रॉन रिएक्टर 'कामिनी' को भी विकसित किया। ध्रुव, अप्सरा और साइरस का इस्तेमाल रेडियो आइसोटोप तैयार करने के साथ-साथ परमाणु प्रौद्योगिकियों व पदार्थों में शोध, मूल और व्यावहारिक शोध तथा प्रशिक्षण में किया जाता है। भारत आज विश्व का सातवाँ तथा प्रथम विकासशील देश है जिसके पास उत्कृष्ट फास्ट ब्रीडर प्रजनक प्रौद्योगिकी मौजूद है।


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